नागपंचमी
नागपंचमी : सांप और हम /
सांपों के साथ हम मनुष्यों का रिश्ता बहुत विचित्र रहा है। वह एक साथ हमारे लिए डर का पर्याय भी है और श्रद्धा का पात्र भी। हमारे देश में हर साल हजारों लोग सर्पदंश से मरते हैं। हमारे डर और गुस्से का शिकार होकर हर साल लाखों सांप भी हमारे हाथों मारे जाते हैं। दूसरी तरफ सांपों के प्रति श्रद्धा इतनी कि हमने उन्हें भगवान शिव के गले से लेकर भगवान विष्णु की शैय्या तक पर जगह दी। हर वर्ष नागपंचमी में वास्तविक सांपों या घर की दीवारों पर गोबर से सांपों की अनुकृति बनाकर उन्हें पूजने की प्रथा भी हमारी ही संस्कृति का हिस्सा है। सांपों को दूध पिलाने की अवैज्ञानिक प्रथा भी जाने कबसे चलती आ रही है। हमारे लोकमानस में मणिधारी और मनुष्य के रूप धारण कर अपने जीवनसाथी की हत्या का बदला लेनेवाले इच्छाधारी नाग-नागिनों की कथाएं रची-बसी हैं। हमने दादी- नानी के मुंह से सांपों की कितनी ही रहस्यमय कथाएं सुनी होंगी। फिल्में और टीवी सीरियल भी देखी हैं। मेरा अपना बचपन तो सांपों के आश्चर्य के साये में ही बीता था। हमारे मिट्टी के घर में अक्सर सांप निकलते थे। खपड़ैल की छत से भी टपक पड़ते थे। कभी बिस्तर पर हमारे साथ लेटे हुए भी मिल जाते थे।बावजूद इसके हमारे परिवार में पीढ़ियों से उन्हें न मारने की परंपरा चली आ रही थी। मां कहती थी कि सर्पदंश से मरे हुए हमारे कुछ पूर्वज सांप बनकर हमारी रक्षा करते आए हैं। हम सांपों को देखने के बाद प्रणाम कर उन्हें रास्ता दे देते थे।
सांप हमारे शत्रु नहीं हैं।जबतक उन्हें छेड़ा या कुचला नहीं जाय तबतक वे किसी को काटते भी नहीं। सत्तानबे प्रतिशत सांप जहरीले भी नहीं होते। अपने भीतर छुपे डर के कारण ही सांपों को हम मारते आ रहे हैं। मनुष्य और सांपों के सह-अस्तित्व की कामना के साथ सभी मित्रों को नागपंचनी की शुभकामनाएं !
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