पेंटिंग से भूत निकलता है और डराता है
पेंटिंग से भूत निकलता है और डराता है /
(आज अखबार 'अमर उजाला' की कवर स्टोरी में प्रेतात्माओं के शास्त्र, विज्ञान, अद्यतन शोध पर आधारित मेरा आलेख )
यह घटना इसी अगस्त महीने के पहले सप्ताह की है।ब्रिटेन के लंदन शहर में स्टेफी नाम की एक लड़की चौरिटी शॉप से एक अनजान कलाकार की एक पेंटिंग खरीदकर घर पहुंची। पेंटिंग में लाल रंग की ड्रेस पहने एक लड़की थी। उसके चेहरे और आँखों में घबराहट थी। स्टेफी ने पेंटिंग को एक दीवार पर टांग दिया। रात भर उसे महसूस होता रहा कि डरावनी लड़की फ्रेम से निकलकर उसका पीछा कर रही है। उसने जैसे-तैसे रात गुजारी और अगले दिन पेंटिंग को चैरिटी शॉप के मैनेजर को वापस कर दिया। चैरिटी शॉप ने इसे स्टेफी का अंधविश्वास मानकर पेंटिंग दूसरे खरीदार माइकल को बेच दी। माइकल के साथ भी वैसा ही हुआ और उसने डरावनी बताकर पेंटिंग वापस कर दी। अब चैरिटी शॉप पर इस पेंटिंग को खरीदारों के लिए इस चेतावनी के साथ रखा गया है कि यह पेंटिंग आपको डरा सकती है।
दुनिया की तमाम आस्थाओं, धर्मों, संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, साहित्य और लोकगाथाओं में कुछ ऐसी रहस्यमय और तर्क से परे चीज़ें हैं जिन्हें हमने देखा तो नहीं, लेकिन जो अनंत काल से हमारी सोच की हिस्सा रही हैं। उनमें से जो एक हजारों वर्षों से हमारी सोच और विमर्श का केंद्रीय विषय रहा है वह है आत्मा अथवा प्रेत। दुनिया के लगभग सभी धर्मों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर देह से अलग एक आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया है। हिन्दू धर्म और दर्शन में आत्मा के अस्तित्व और स्वरूप पर सबसे विस्तार और बारीकी से चर्चा है। भौतिक देह पदार्थों ने निर्मित एक वस्तु है और अभौतिक आत्मा उसकी संचालक शक्ति। देह नश्वर है, आत्मा अजर-अमर। वह हमेशा से रही है और हमेशा रहेगी। आत्मा अपने को व्यक्त करने के लिए या अपने विकास के कुछ सोपानों को पार करने के लिए देह धारण करती है। देह वृद्धावस्था या अन्य कारण से जब असमर्थ हो जाती है तो आत्मा उसका परित्याग कर एक और यात्रा पर निकल पड़ती है। आत्मा यानी आकाश तत्व के साथ छोड़ देने के बाद शरीर निर्जीव होकर उन्हीं पार्थिव तत्वों - भूमि, जल, अग्नि और वायु - में मिल जाता है जिनके मेल से कभी उसका अस्तित्व बना था।
हिन्दू धर्म और दर्शन में देह से निकल जाने के बाद आत्मा की मुख्यतः तीन गतियां बताई गई हैं। देह के सुख-दुख, स्वजनों के मोह और सांसारिक वस्तुओं के आकर्षण से अपने को अलग कर लेने वाली वीतरागी आत्माएं अस्तित्व के उच्चतर आयामों में पहुंचकर मोक्ष को प्राप्त होती हैं। मोक्ष, मुक्ति या निर्वाण वह अवस्था है जिसमें आत्मा की तमाम गति ठहर जाती है। ऐसी मुक्त आत्माओं का पुनर्जन्म नहीं होता। सदाचारी और परोपकारी लोगों की आत्माएं कुछ काल तक स्वर्ग के सुख और दुष्ट लोगों की आत्माएं नर्क के दुख भोगने के बाद एक बार फिर जन्म लेकर पृथ्वी पर लौट आती हैं। अधूरी इच्छाओं, अपूर्ण वासनाओं के साथ देह छोड़ने वाली और सांसारिक वस्तुओं के मोहजाल में आकंठ डूबी आत्माओं को प्रेत गति प्राप्त होती है। वे पृथ्वी के वातावरण में ही मौजूद रहकर अपनी प्रिय और काम्य लोगों, स्थलों और वस्तुओं के इर्दगिर्द भटकती हैं। अपने संस्कारों के अनुरूप एक और देह की तलाश में। यह तलाश जल्द भी खत्म हो सकती है और इसमें सैकड़ों या हजारों साल भी लग सकते हैं।
आधुनिक विज्ञान देह से अलग आत्मा, प्रेत अथवा किसी अन्य अभौतिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। उसके अनुसार मानव मष्तिष्क को ही धर्म और दर्शन आत्मा कहते रहे हैं जिसका अस्तित्व देह के साथ ही खत्म हो जाता है। देह के नष्ट होने के बाद कुछ भी नहीं बचता। इसके विपरीत अध्यात्म और परामनोविज्ञान से जुड़े लोगों का कहना है कि भले हमारी सोच के एक बड़े हिस्से पर अंधविश्वास हावी है, आत्माओं के अस्तित्व पर सदा से चला आ रहा विश्वास अकारण नहीं है। सोचने की बात है कि मरने के बाद देह तो मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन हमारे भीतर तमाम बुद्धि-विवेक, ज्ञान, भावनाओं के साथ जो संचालक ऊर्जा मौजूद है वह कहां जाती होगी ? विज्ञान मानता है कि ऊर्जा का कभी विनाश नहीं होता। उसका रूपांतरण भर होता है। इसी विदेह ऊर्जा को हम चेतना, आत्मा अथवा भूत-प्रेत कहते हैं। वस्तुतः हम सब विराट ब्रह्मांडीय ऊर्जा के अंश हैं। छोटी-छोटी ऊर्जाएं जो अपना रूप बदल-बदलकर सदा इसी प्रकृति में बनी रहेंगी। अगला कोई जीवन हमें इस रूप में शायद नहीं मिले, लेकिन किसी न किसी रूप में मिलेगा जरूर। मोक्ष की अवधारणा शायद कल्पना है। मोक्ष का अर्थ ऊर्जा की तमाम गति का ठहर जाना है और ऊर्जा की शून्य गति कभी भी संभव नहीं। स्वर्ग और नर्क के विचार धर्मों ने लोगों को अच्छे काम के लिए प्रेरित करने और बुराईयों से बचाने के लिए गढ़े हैं। हमारी आत्मा की कोई इच्छा या तलाश अगर पूरी होनी है तो किसी परलोक में नहीं, इसी संसार में पूरी होनी है। संसार ही आत्माओं का घर है और यही गंतव्य। अब वैज्ञानिकों का एक वर्ग भी मानने लगा है कि देह के नष्ट होने के बाद भी हमारी चेतना अपनी बुद्धिमत्ता के साथ इसी ब्रह्मांड में मौजूद रहती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में गणित और भौतिकी के प्रोफेसर सर रोजर पेनरोज़ और एरिजोना विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञानी डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ दशकों के शोध के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारी चेतना मस्तिष्क की कोशिकाओं के भीतर मौजूद कुछ सूक्ष्मनलिकाओं में समाहित है। यह चेतना मस्तिष्क के अंदर क्वांटम कंप्यूटर द्वारा चलाए जा रहे प्रोग्राम जैसी है। जैविक मृत्यु के बाद भी यह प्रोग्राम जारी रह सकता है। मृत्यु के समय मस्तिष्क की सूक्ष्मनलिकाएं अपनी क्वांटम स्थिति खो देती हैं लेकिन वे अपने भीतर निहित जानकारी को बनाए रखते हुए ब्रह्मांड में चली जाती हैं। इस खोज से विज्ञान की अबतक की यह सोच खंडित होती है कि मानव मष्तिष्क ही कथित आत्मा है जिसका अस्तित्व देह के साथ ही खत्म हो जाता है। इस रहस्योद्घाटन को वैज्ञानिकों के एक बड़े वर्ग का समर्थन मिलना अभी बाकी है लेकिन इसके बाद देह से इतर आत्माओं के अस्तित्व पर विमर्श और अनुसंधान के एक दौर की शुरुआत जरूर हुई है।
एक तरह से देखा जाय तो हम सब अपने पूर्वजों की ऊर्जाओं, आत्माओं या प्रेतों से घिरे हुए हैं। लोगों के ऐसे अनुभव रहे हैं कि ये अदृश्य चेतनाएं हमसे संवाद करना चाहती हैं। चेतना के जिस स्तर पर हम जी रहे हैं उसमें यह संवाद संभव नहीं होता। चेतना के ऊंचे स्तर पर पहुंचे हुए योगी आत्माओं से संपर्क के दावे करते हैं। उनसे संपर्क ऐसे लोगों के भी हो जाया करते हैं जिनकी चेतना का स्तर छोटे और मासूम बच्चों जैसा होता है। इंद्रियों के अभाव में प्रेतात्माएं हमारे शरीर से नहीं, बल्कि अवचेतन या अचेतन मष्तिष्क से खेलती हैं। यह मानसिक संदेश टेलिपैथी जैसा कुछ होता है जिसे हम ध्यान में, तंद्रा की अवस्था में या सपनों में अक्सर सुनते और देखते तो हैं लेकिन भ्रम मानकर उन्हें अनदेखा-अनसुना भी कर देते हैं। जिन कुछ लोगों ने भीतर से आ रही इन आवाजों को सुना उनमें से कुछ के अनुभव हैरतअंगेज रहे हैं। लियोनार्डो द विंसी जैसे चित्रकार और अल्बर्ट आइंस्टाइन जैसे वैज्ञानिक ने यह स्वीकार किया है कि उन्हें कला के कई विचार या विज्ञान के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत सपनों में या अचेतन अवस्था में प्राप्त संदेशों से हासिल हुए थे। कई विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञों ने निद्रा या अर्द्धनिद्रा की अवस्था में किसी अज्ञात शक्ति से गणित के कई महवपूर्ण सूत्र मिलने की बात कही है। कई बार आम लोगों द्वारा भी अर्द्धचेतन या अचेतन अवस्था या स्वप्न में देखी गई घटनाएं या मिली हुई सूचनाएं आगे जाकर सही साबित होती रही हैं। यह सब संयोग मात्र नहीं हो सकता।
प्रेतात्माओं के अस्तित्व पर बहस के साथ उनसे जुड़ी कुछ अवांछित बातें भी चलती आ रही हैं। दुनिया के हर हिस्से में भूत-प्रेतों के उपद्रव और हिंसक कृत्यों की कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं। बहुत सारे लोगों का मानना है कि कुछ आत्माएं या प्रेत इतने प्रबल होते हैं वे आपके घरों में पत्थरबाजी कर सकते हैं, आपको उठाकर घर के बाहर फेंक दे सकते हैं और ज्यादा गुस्से में हुए तो आपकी हत्या भी कर सकते हैं। यह अंधविश्वास सदियों से सुने-सुनाए जाने वाले काल्पनिक किस्सों, हॉरर साहित्य और भूतिया फिल्मों की देन है। इन अंधविश्वासों ने तांत्रिकों और ओझओं के एक वर्ग को जन्म दिया है जिसके लिए लोगों का भय ही रोजगार है। प्रेतों के पास हिंसा करने के लिए देह या इंद्रियां नहीं होतीं। वे ऊर्जाएं हैं जो ज्यादा से ज्यादा आपके मन-मष्तिष्क को प्रभावित कर सकती हैं। ये प्रेत ऊर्जाएं उतनी ही अच्छी या बुरी होती हैं जितनी वे अपने देहकाल में रही हैं। अच्छी ऊर्जाएं आसपास हों तो हमारे मनोमस्तिष्क पर उनका प्रभाव सकारात्मक होता है। हर्ष, उल्लास, उत्साह और अच्छे विचारों के रूप में। नकारात्मक ऊर्जाओं की उपस्थिति हमें भ्रमित, परेशान और विचलित करती हैं। कुछ मामलों में मानसिक तौर पर बीमार भी जिसे आम बोलचाल की भाषा में प्रेतलीला या भूत चढ़ना कहते हैं। प्रेत ऊर्जाओं को देखने के दावे भी होते रहे हैं। सच यह है कि उनका कोई रूप या आकार नहीं होता। उन्हें देखा नहीं, महसूस भर किया जा सकता हैं। हां, आप अत्यधिक डरे हुए हों तो आपको प्रेत दिखाई दे सकते हैं। भय के अतिरेक में मस्तिष्क हमारे भीतर के डर को ही प्रेतों के रूप में प्रोजेक्ट करता है। उन्हीं रूपों और आकारों में जिन्हें हम किस्सों और हॉरर फिल्मों में सुनते-देखते आ रहे हैं। यह वैसा ही है जैसे भक्ति के अतिरेक में कुछ लोगों को देवी-देवताओं के साक्षात दर्शन हो जाते हैं।
आत्माओं या भूत-प्रेतों के को लेकर हमारे दिमाग में डर या कचरा ही ज्यादा भरा हुआ है वरना उनकी उपस्थिति अवैज्ञानिक भी नहीं है। विदेह ऊर्जाओं के रूप में उनके वास्तविक स्वरूप और भूमिका को लेकर गंभीर शोध बहुत कम हुए हैं। जिन्हें हम आत्मा या भूत- प्रेत कहकर सदियों से डरते और डराते रहे हैं, वे वस्तुतः हमारी ही ऊर्जाएं हैं। मरने के बाद हम सबको प्रेत ही होना है। ज़रूरी है कि अंधविश्वासों को परे रखकर उनके बारे में खुले दिमाग से बात हों। अभी पिछली सदी में पहली बार आत्माओं, पुनर्जन्म, नियर डेथ एक्सपीरिएंस, टेलीपैथी, स्पिरिचुअल कम्युनिकेशन, आउट ऑफ बॉडी जर्नी, पास्ट लाइफ रिग्रेशन जैसे अभौतिक विषयों पर परीक्षण, विमर्श और शोध आरंभ हुए हैं। पैरानॉर्मल अब एक विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा है। अब कई उन्नत और अत्याधुनिक उपकरणों से किसी स्थान पर बढ़ी हुई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ऊर्जा, तापमान और आवाजों से प्रेतात्माओं की उपस्थिति का पता लगाया जाता है। नियर डेथ एक्सपीरिएंस में मौत के मुंह से लौटे बहुत से लोगों की मृत्यु के बाद उनकी आत्माओं की अधूरी यात्रा के अनुभवों का दस्तावेजीकरण हुआ है। लगभग तमाम लोगों के अनुभव एक जैसे ही पाए गए हैं। आत्माओं के आउट ऑफ बॉडी जर्नी को बहुत समय तक दिमागी फितूर ही माना जाता रहा था लेकिन हाल के वर्षों में ऐसे दृष्टांत भी सामने आए हैं जब हिप्नोटिज्म या ऑटो सजेशन से चेतन मष्तिष्क के सुप्त हो जाने के बाद आत्माओं ने हजारों मील दूर किसी व्यक्ति के पास जाकर वहां हो रही घटनाओं को देखा और होश में आने के बाद उसका जैसा विवरण व्यक्ति ने प्रस्तुत किया वह सत्यापन के बाद अक्षरशः सत्य पाया गया। आत्माओं के पुनर्जन्म पर भी इन दिनों गंभीर शोध हो रहे हैं। असंखय ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं जिनमें छोटे बच्चों में अपने पिछले जन्म के स्थान और उससे जुड़े लोगों की स्मृतियां शेष रह गई थीं। उनके बताए जगहों पर ले जाने के बाद उन्होंने पिछले जन्म के परिवारजन तथा सगे-संबंधियों को ही नहीं पहचाना, बल्कि उनसे जुड़ी पूर्वजन्म की यादें भी साझा की। पुनर्जन्म पर अबतक का सबसे महत्वपूर्ण शोध वर्जिनिया स्कूल ऑफ मेडिसिन्स के विश्वप्रसिद्ध मनोचिकित्सक इयान स्टीवेन्सन ने की है। उन्होंने चालीस वर्षों तक पिछले जन्मों की यादें सहेजे दुनिया भर के लगभग तीन हजार बच्चों की जांच के बाद पाया कि मौत के अनुभव, दृश्य, आत्मिक चेतना, स्मृतियां, क्षमताएं, बीमारियां और शारीरिक चोटें एक जन्म से दूसरे जन्म तक स्थानांतरित होती हैं। उनकी विस्तृत रिपोर्ट 'रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी' इस विषय पर दुनिया की सबसे चर्चित किताबों में एक है।
यह सच है कि आत्माओं पर जो शोध हो रहे हैं वे आरंभिक अवस्था में ही है लेकिन उनसे यह उम्मीद जरूर बंधी है कि निकट भविष्य में हमें उन कुछ सवालों के जवाब जरूर मिल सकेंगे जो सवाल मनुष्यता को आदिम युग से परेशान करते आ रहे हैं। जो आत्मा अनंतकाल से हमारी सोच, आस्था और दर्शन का केंद्रबिंदु रही है और जिसपर आज भी बहुसंख्यक लोगों का भरोसा बना हुआ है उसपर सार्थक विमर्श तथा गंभीर शोध की आवश्यकता तो है। उसे अंधविश्वास कहकर सिरे से खारिज़ कर देना सही नहीं है। अंधविश्वास अगर गलत है तो अंध अविश्वास कैसे सही हो सकता है ?
Comments
Post a Comment